Key Points Summary on this article
This article is Written by Deepika Narayan Bhardwaj
Who is Deepika Narayan Bhardwaj??
- Deepika Narayan Bhardwaj is an Indian journalist, filmmaker, and men's rights activist.
- She is best known for her work highlighting the misuse of laws meant to protect women, such as Section 498A (anti-dowry law) and false rape allegations.
- Her documentary "Martyrs of Marriage" and "India Sons" focuses on the misuse of these laws and the struggles faced by men and their families due to false accusations.
- Bhardwaj advocates for balanced legal reforms to protect both men's and women's rights.
- दीपिका नारायण भारद्वाज का मानना है कि महिला अधिकारों के लिए संघर्ष करते हुए पुरुषों के अधिकारों की अनदेखी नहीं होनी चाहिए।
- वैवाहिक दुष्कर्म कानून के संभावित खतरे पर विचार करने की जरूरत है।
- 2012 में दीपिका ने "Martyrs of Marriage" डॉक्यूमेंट्री बनानी शुरू की थी।
- उस समय धारा 498A का व्यापक दुरुपयोग हो रहा था।
- कई महिलाएं इस कानून का उपयोग पति और उसके परिवार को परेशान करने के लिए कर रही थीं।
- कोर्ट और पुलिस अधिकारी भी इस कानून के दुरुपयोग को अनौपचारिक रूप से स्वीकार करते थे।
- सुप्रीम कोर्ट ने धारा 498A के दुरुपयोग को "कानूनी आतंकवाद" कहा था।
- 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने 498A में तुरंत गिरफ्तारी पर रोक लगाने की गाइडलाइन जारी की।
- 498A के बाद महिलाओं द्वारा छेड़खानी, दुष्कर्म और अप्राकृतिक सेक्स के आरोपों का भी दुरुपयोग शुरू हो गया।
- महिलाओं द्वारा पति और उसके परिवार पर झूठे आरोप लगाकर बड़ी रकम वसूली जा रही है।
- कई केसों में, झूठे आरोपों के बदले भारी सेटलमेंट की मांग की जाती है।
- वैवाहिक दुष्कर्म कानून का भी 498A की तरह दुरुपयोग होने की संभावना है।
- कोर्ट के मध्यस्थता केंद्रों में ऐसे झूठे मुकदमों में सौदेबाजी की जा रही है।
- अधिक गंभीर धाराएं जोड़कर बड़ी रकम वसूली जा रही है।
- पति और उसका परिवार इतनी परेशानी झेलते हैं कि वे कोई भी मांग मानने को तैयार हो जाते हैं।
- अगर वैवाहिक दुष्कर्म कानून बना, तो इसके दुरुपयोग से पुरुषों को अधिक मुश्किलें झेलनी पड़ेंगी।
- ऐसे झूठे मुकदमों के कारण, पुरुषों की आत्महत्या की घटनाएं बढ़ रही हैं।
- दिल्ली और कर्नाटक हाई कोर्ट ने कई झूठे मुकदमों को खारिज किया है।
- कोर्ट ने झूठे आरोप लगाने की प्रवृत्ति पर रोक लगाने की आवश्यकता बताई है।
- महिलाओं द्वारा झूठे मुकदमे करने पर उन्हें सजा नहीं मिलती।
- 498A के झूठे मुकदमों में भी महिलाओं को सजा नहीं मिलती।
- वैवाहिक दुष्कर्म कानून को जेंडर न्यूट्रल करने की मांग की जा रही है।
- नारीवादियों का तर्क है कि यह कानून महिलाओं के समानता के अधिकार के लिए जरूरी है।
- नारीवादी 498A या घरेलू हिंसा कानून में पुरुषों के पीड़ित होने की बात को नहीं मानते।
- 21वीं सदी में कानून का केवल महिलाओं के पक्ष में होना नारीवाद के सिद्धांतों के खिलाफ है।
- नारीवाद अब पुरुषों को दबाने पर अधिक केंद्रित हो गया है।
- वैवाहिक दुष्कर्म कानून से पहले न्यायालयों में कई महत्वपूर्ण आदेश दिए जा चुके हैं।
- दिल्ली उच्च न्यायालय ने घरेलू झगड़ों में झूठे दुष्कर्म के आरोपों को खारिज किया।
- कर्नाटक उच्च न्यायालय ने शादी के एक दिन बाद लगाए गए झूठे दुष्कर्म के आरोप को खारिज किया।
- झूठे आरोपों का दुरुपयोग परिवारों और समाज पर नकारात्मक प्रभाव डाल रहा है।
- भारत में पत्नी द्वारा पति पर झूठे यौन उत्पीड़न के आरोप लगाकर बच्चों की कस्टडी हासिल की जा रही है।
- संस्था "एकम न्याय फाउंडेशन" ने ऐसे 825 मामले उजागर किए जहां पुरुषों ने पत्नी द्वारा प्रताड़ना के कारण आत्महत्या की।
- कुछ महिलाएं वैवाहिक दुष्कर्म कानून का गलत इस्तेमाल कर व्यभिचार को छिपा सकती हैं।
- वैवाहिक दुष्कर्म कानून लाने से पहले यह सोचना जरूरी है कि इसका समाज पर क्या प्रभाव होगा।
- अगर महिला झूठा दुष्कर्म का आरोप लगाती है, तो पति के लिए यह साबित करना कठिन होगा कि उसने ऐसा नहीं किया।
- महिला झूठे आरोपों के बदले बड़ी रकम मांग सकती है, जैसा 498A में होता है।
- वैवाहिक दुष्कर्म का कानून अगर बिना ठोस सबूत के लागू होता है, तो इससे न्यायिक प्रणाली पर दबाव बढ़ेगा।
- भारत में शारीरिक संबंध न बनाना तलाक का आधार माना जाता है।
- अगर पति तलाक मांगता है और पत्नी दुष्कर्म का आरोप लगाती है, तो कोर्ट किसकी बात मानेगा?
- क्या केवल महिला का कथन पति को जेल भेजने के लिए पर्याप्त होगा?
- नारीवादी यह सिद्ध करना चाहते हैं कि हर परिस्थिति में महिला ही पीड़िता होती है।
- महिला अधिकारों के लिए संघर्ष करते हुए पुरुषों के अधिकारों की उपेक्षा नहीं होनी चाहिए।
- पुरुषों के सम्मान और अधिकार भी महत्वपूर्ण हैं।
- पतियों द्वारा पत्नी का मानसिक और यौन शोषण होने पर उन्हें सजा मिलनी चाहिए।
- लेकिन यह भी सुनिश्चित करना जरूरी है कि महिलाएं कानूनों का दुरुपयोग न करें।
- वर्तमान कानूनों में महिलाओं द्वारा दुरुपयोग के मामलों में उन्हें सजा नहीं मिलती।
- सुप्रीम कोर्ट को यह देखना चाहिए कि ऐसा कानून न बने जो एक पक्ष के अधिकारों को नजरअंदाज करे।
- कोई भी कानून सभी पक्षों के अधिकारों का सम्मान करते हुए बनाया जाना चाहिए।
- वैवाहिक दुष्कर्म कानून का एकतरफा दृष्टिकोण समाज में असंतुलन पैदा कर सकता है।
- लेखिका का मानना है कि ऐसा कोई रास्ता निकालना चाहिए जिससे किसी भी पक्ष के अधिकारों का हनन न हो।
Quick Summary
Posted By Technical Piyush Guptaदीपिका नारायण भारद्वाज ने महिला अधिकारों के संघर्ष में पुरुषों के अधिकारों की अनदेखी पर सवाल उठाए हैं। वैवाहिक दुष्कर्म कानून को लेकर उनका मानना है कि इसका दुरुपयोग हो सकता है। 2012 में जब उन्होंने "Martyrs of Marriage" डॉक्यूमेंट्री बनाई, तब धारा 498A का दुरुपयोग चरम पर था। सुप्रीम कोर्ट ने 498A के दुरुपयोग को "कानूनी आतंकवाद" कहा और तुरंत गिरफ्तारी पर रोक लगाने की गाइडलाइन जारी की। महिलाओं द्वारा झूठे आरोपों से पति और उसके परिवार को परेशान किया जा रहा है। वैवाहिक दुष्कर्म कानून का दुरुपयोग भी 498A की तरह होने की संभावना है। झूठे मुकदमों में महिलाएं बड़ी रकम वसूल रही हैं। नारीवादी वैवाहिक दुष्कर्म कानून को समानता के अधिकार का मुद्दा मानते हैं। लेकिन, वे 498A या घरेलू हिंसा कानून में पुरुषों की पीड़ा पर ध्यान नहीं देते। पुरुषों के अधिकारों की अनदेखी करना न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है। कई झूठे आरोपों को अदालतों ने खारिज किया है। वैवाहिक दुष्कर्म कानून को जेंडर न्यूट्रल बनाने की मांग उठ रही है। भारत में शारीरिक संबंध न बनाना तलाक का आधार है, लेकिन पत्नी के झूठे दुष्कर्म आरोप से स्थिति जटिल हो सकती है। इस तरह के कानूनों का एकतरफा दृष्टिकोण पुरुषों पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। झूठे आरोपों के कारण पुरुषों की आत्महत्या की घटनाएं बढ़ रही हैं। सुप्रीम कोर्ट को कानून बनाते समय दोनों पक्षों के अधिकारों का ध्यान रखना चाहिए। नारीवादियों द्वारा प्रस्तुत तर्क अब पुरुषों को दबाने पर अधिक केंद्रित दिखते हैं। लेखिका का मानना है कि ऐसा कोई कानून नहीं बनना चाहिए जिससे सिर्फ एक पक्ष के अधिकारों का हनन हो। दोनों पक्षों के अधिकारों का सम्मान करते हुए न्यायिक प्रणाली में सुधार की जरूरत है। वैवाहिक दुष्कर्म कानून के संदर्भ में निष्पक्षता और संतुलन आवश्यक है।
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